शरणार्थी संकट एवं प्रवासन प्रवृत्तियाँ – एक वैश्विक चुनौती

21वीं सदी के विश्व में एक ऐसी समस्या लगातार गंभीर रूप ले रही है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता — शरणार्थी संकट और प्रवासन प्रवृत्तियाँ। यह सिर्फ एक मानवीय संकट नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और वैश्विक चुनौती बन चुकी है। युद्ध, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिक उत्पीड़न, जलवायु परिवर्तन और गरीबी के कारण लाखों लोग अपने देश छोड़ने को मजबूर हैं।


शरणार्थी (Refugee) वे व्यक्ति होते हैं जिन्हें अपने देश में अत्याचार, हिंसा, या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो और उन्हें जीवन रक्षा के लिए किसी अन्य देश में शरण लेनी पड़ी हो। इनकी पहचान अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेषकर 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और 1967 के प्रोटोकॉल द्वारा की जाती है।


प्रवासन (Migration) का तात्पर्य होता है – एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर लोगों का स्थायी या अस्थायी रूप से जाना। इसके कई रूप होते हैं:

देश के अंदर एक राज्य या क्षेत्र से दूसरे राज्य या क्षेत्र की ओर जाना।

एक देश से दूसरे देश की ओर जाना, जैसे नौकरी, पढ़ाई या सुरक्षा की तलाश में।

जहाँ लोग बेहतर जीवन, शिक्षा या नौकरी के लिए खुद से देश छोड़ते हैं।

जहाँ लोग मजबूरी में देश छोड़ते हैं — जैसे युद्ध, जातीय नरसंहार, या जलवायु आपदा।


  1. युद्ध और संघर्ष (जैसे सीरिया, अफगानिस्तान, यमन)
  2. राजनीतिक दमन और तानाशाही
  3. धार्मिक और जातीय उत्पीड़न
  4. आर्थिक असमानता और गरीबी
  5. जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ
  6. आतंकवाद और हिंसा

  • UNHCR के अनुसार, 2024 के अंत तक 11 करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं, जिनमें लगभग 3 करोड़ शरणार्थी हैं।
  • सबसे अधिक शरणार्थी पैदा करने वाले देश हैं: सीरिया, अफगानिस्तान, वेनेजुएला, यूक्रेन, दक्षिण सूडान
  • सबसे अधिक शरणार्थियों को आश्रय देने वाले देश हैं: तुर्किये, ईरान, जर्मनी, पाकिस्तान, युगांडा

भारत शरणार्थियों को मानवीय दृष्टिकोण से देखता रहा है, भले ही वह UN Refugee Convention का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। भारत में रह रहे प्रमुख शरणार्थी समुदाय:

  • तिब्बती शरणार्थी
  • श्रीलंकाई तमिल
  • रोहिंग्या मुस्लिम
  • अफगानी शरणार्थी

भारत ने हमेशा शरणार्थियों को शांति और गरिमा से जीवन देने का प्रयास किया है, लेकिन इससे जुड़े सुरक्षा और संसाधन समस्याएं भी सामने आई हैं।


  • श्रमबल की आपूर्ति
  • सांस्कृतिक विविधता
  • अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मजबूती
  • सुरक्षा संबंधी चिंता
  • संसाधनों पर दबाव
  • स्थानीय बेरोजगारी
  • सांस्कृतिक संघर्ष

  1. अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना चाहिए।
  2. शरणार्थियों को मानवाधिकारों की पूरी गारंटी मिलनी चाहिए।
  3. शांति और स्थिरता स्थापित करने हेतु वैश्विक पहल की आवश्यकता है।
  4. प्रवासन की निगरानी और वैधता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  5. स्थानीय समाज और शरणार्थियों के बीच संवाद और सहिष्णुता को बढ़ावा देना चाहिए।

शरणार्थी संकट और प्रवासन केवल सरकारी नीति या सुरक्षा का मामला नहीं है, यह एक मानवीय आपदा है। जब लाखों लोग अपनी जड़ों से उजड़कर अनजाने स्थानों पर शरण लेने को मजबूर होते हैं, तो यह पूरे विश्व के लिए आत्ममंथन का विषय है। ज़रूरत है सहानुभूति, समझदारी और संतुलित नीतियों की, ताकि विस्थापन का दर्द किसी का स्थायी भाग्य न बन जाए।


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