पंजाब का Anti‑Sacrilege बिल: धार्मिक भावनाओं की रक्षा या अभिव्यक्ति की सीमा?


पंजाब में धार्मिक ग्रंथों के अपमान को लेकर लंबे समय से तनाव और घटनाएँ सामने आती रही हैं। इसी पृष्ठभूमि में 2025 में पंजाब विधानसभा ने “Punjab Prevention of Offences Against Holy Scripture(s) Bill, 2025” का मसौदा पेश किया। इस बिल का उद्देश्य धार्मिक भावनाओं की रक्षा करना बताया गया है, लेकिन यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल भी खड़ा करता है।


  • धार्मिक ग्रंथों के अपमान को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
  • दोषियों को 10 से 20 साल तक की सजा और ₹5–10 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
  • अपमान को बढ़ावा देने या इसमें शामिल होने वालों पर भी समान कार्रवाई होगी।

  • बिल को जांचने के लिए 15 सदस्यीय चयन समिति गठित की गई है।
  • समिति छह महीने में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।
  • आम नागरिकों से सुझाव ईमेल और डिजिटल माध्यम से लेने पर विचार किया जा रहा है।
  • सभी प्रमुख राजनीतिक दल इस प्रक्रिया का हिस्सा हैं।

  • अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम धार्मिक सम्मान
    • क्या यह कानून धर्म की रक्षा करेगा या विचारों और आलोचना को दबा देगा?
  • दुरुपयोग की आशंका
    • कहीं ऐसा तो नहीं कि विरोध या कलात्मक अभिव्यक्ति को अपराध मान लिया जाए?
  • समानता का सवाल
    • क्या यह सभी धर्मों और समुदायों पर समान रूप से लागू होगा?

भारत के संविधान में पहले से ही धार्मिक भावनाओं को आहत करने से रोकने वाले प्रावधान हैं। हालांकि, यह नया बिल अधिक कठोर सज़ाओं का प्रस्ताव करता है। सवाल यह उठता है कि क्या राज्य स्तर पर इतने सख्त कानून की आवश्यकता है या इससे संघीय और नागरिक अधिकारों में टकराव पैदा होगा?


  • समर्थक: धार्मिक ग्रंथों की गरिमा की रक्षा जरूरी है और कड़ी सजा से अपराधियों में भय रहेगा।
  • विरोधी: यह कानून आलोचना और कला की आज़ादी को सीमित कर सकता है और राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग हो सकता है।

  • चयन समिति की सिफारिशों के बाद ही बिल पर अंतिम फैसला होगा।
  • अगर इसे लागू किया गया, तो निगरानी और दुरुपयोग रोकने के लिए कड़े प्रावधान जरूरी होंगे।
  • समाज में धार्मिक सौहार्द बनाए रखने के लिए कानून से ज़्यादा जन-जागरूकता और संवाद की ज़रूरत होगी।

पंजाब का यह बिल धार्मिक भावनाओं की रक्षा के लिए जरूरी कदम हो सकता है, लेकिन यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बहस को भी नया आयाम देता है। सही संतुलन ढूंढना ही इस कानून की असली चुनौती होगी।


आप इस बिल के बारे में क्या सोचते हैं?

  • क्या यह धार्मिक ग्रंथों की गरिमा बचाएगा या विचारों की स्वतंत्रता को सीमित करेगा?
  • अपने विचार और सुझाव हमें कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताएं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Review Your Cart
0
Add Coupon Code
Subtotal